खुश हूँ

 खुश हूँ


खुश हूँ दिन भर मुद्राएं जोड़ने में
खुश हूँ उन्हें न खर्च करने में।। 

खुश हूँ स्वयं को ब्यस्त रखने में, 
खुश हूँ किसी को न मिलने में।। 

खुश हूँ परिवार में न रह कर, परिवार बनाने में।
खुश हूँ किसी और को खुश रखने में।। 

खुश हूँ चित- परिचित साथी को छोड़, काल्पनिक रिश्ते बनाने में।
खुश हूँ अपने कर्तव्यों का भार, दूसरे के सर मढ़ने में।। 

खुश हूँ जीवन न जी कर, अंजाने पलों को जीने में। 
खुश हूँ स्वयं को न जानकर, औरों को पढ़ने में।। 

खुश हूँ ये समझकर, 
                 कि क्या मैं खुश हूँ? 

            
                                                      --  @ maira









शहर की रानाईयां

 जगमगाते शहर के रानाईयों में, क्या न था

 ढूंढने निकला था जिसको मैं, वही चेहरा न था ।। 


मिलते चले लोग कई, राह में क्या न था 

ढूंढने निकला था जिसको मैं, वही सुकून ना ।। 


उजले चांद की चांदनी में, क्या न था 

ढूंढने निकला था जिसको मैं, वही तारा न था ।। 


मैं वही, तुम वही, यह रास्ते, मंजिल वही, 

इस सफर में क्या न था ? 

ढूंढने निकला था जिसको मैं, वही चेहरा न था।। 


जगमगाते शहर के रानाईयों में, क्या न था

ढूंढने निकला था जिसको मैं, वही चेहरा न था ।। 

-@maira




किताबें (Kitabein)



किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती हैं 


महीनों अब मुलाक़ातें नहीं होतीं
जो शामें उन की सोहबत में कटा करती थीं, अब अक्सर 


गुज़र जाती हैं कम्पयूटर के पर्दों पर
बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें 


उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है
बड़ी हसरत से तकती हैं 


जो क़द्रें वो सुनाती थीं
कि जिन के सेल कभी मरते नहीं थे 


वो क़द्रें अब नज़र आती नहीं घर में
जो रिश्ते वो सुनाती थीं 


वो सारे उधड़े उधड़े हैं
कोई सफ़्हा पलटता हूँ तो इक सिसकी निकलती है 


कई लफ़्ज़ों के मअ'नी गिर पड़े हैं
बिना पत्तों के सूखे तुंड लगते हैं वो सब अल्फ़ाज़ 


जिन पर अब कोई मअ'नी नहीं उगते
बहुत सी इस्तेलाहें हैं 


जो मिट्टी के सकोरों की तरह बिखरी पड़ी हैं
गिलासों ने उन्हें मतरूक कर डाला 


ज़बाँ पर ज़ाइक़ा आता था जो सफ़्हे पलटने का
अब उँगली क्लिक करने से बस इक 


झपकी गुज़रती है
बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है पर्दे पर 


किताबों से जो ज़ाती राब्ता था कट गया है
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे 


कभी गोदी में लेते थे
कभी घुटनों को अपने रेहल की सूरत बना कर 


नीम सज्दे में पढ़ा करते थे छूते थे जबीं से
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी 


मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल और
महके हुए रुकए 


किताबें माँगने गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उन का क्या होगा 


वो शायद अब नहीं होंगे!

- गुलज़ार 


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बरसात की बूंदों में (Barsat ki Bundo mein)


बरसात की बूंदों में लिपटी ये रात,

याद आने लगीं बीतीं सारी बात।


कली की तरह खिल रही है ये बरसात,

हर सांस हुई गुलजार, पुष्पशाला सी बनी रात।


गीत गाती हैं बूंदें, सरगम की धुन सुना रहा आसमां,

इस नए रंग में सजी, मौसम की पहली बरसात ।


भीनी सी ठंडक, उलझनों की आग बुझाने लगी,

दर्द के रागों में बंधी, सुकून की लोरियाँ सुनाती ये रात। 


गहरी आँखों में बसी, बे फ़िकर सी ये बरसात,

ख्वाबों का धुंधला सिलसिला, प्यार भरी बातें साथ।


बरसात की रिमझिम सुन, दिल की धड़कन भी बढ़ी,

जीवन की गहराईयों में डूबती ये रात । 


बरसात की बूंदों में लिपटी ये रातें.......................। । 


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कौन सी बात है तुम में ऐसी, इतने अच्छे क्यूँ लगते हो

 इतनी मुद्दत बा'द मिले हो 

किन सोचों में गुम फिरते हो 


इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो 

हर आहट से डर जाते हो 


तेज़ हवा ने मुझ से पूछा 

रेत पे क्या लिखते रहते हो 


काश कोई हम से भी पूछे 

रात गए तक क्यूँ जागे हो 


में दरिया से भी डरता हूँ 

तुम दरिया से भी गहरे हो 


कौन सी बात है तुम में ऐसी 

इतने अच्छे क्यूँ लगते हो


पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा था 

पत्थर बन कर क्या तकते हो

जाओ जीत का जश्न मनाओ 

में झूटा हूँ तुम सच्चे हो 


अपने शहर के सब लोगों से 

मेरी ख़ातिर क्यूँ उलझे हो 


कहने को रहते हो दिल में 

फिर भी कितने दूर खड़े हो 


रात हमें कुछ याद नहीं था 

रात बहुत ही याद आए हो 

हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से 

अपनी कहो अब तुम कैसे हो 


'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो 

जैसे हो फिर भी अच्छे हो


- शायर मोहसिन




नहीं तो

 ये ग़म क्या दिल की आदत है?



ये ग़म क्या दिल की आदत है? नहीं तो

किसी से कुछ शिकायत है? नहीं तो


है वो इक ख़्वाब-ए-बे ताबीर इसको

भुला देने की नीयत है? नहीं तो


किसी के बिन किसी की याद के बिन

जिए जाने की हिम्मत है? नहीं तो


किसी सूरत भी दिल लगता नहीं? हाँ

तो कुछ दिन से ये हालत है? नहीं तो


तुझे जिसने कहीं का भी नहीं रक्खा

वो इक ज़ाती सी वहशत है? नहीं तो


तेरे इस हाल पर है सब को हैरत

तुझे भी इस पे हैरत है? नहीं तो


हम-आहंगी नहीं दुनिया से तेरी

तुझे इस पर नदामत है? नहीं तो


वो दरवेशी जो तज कर आ गया तू

ये दौलत उस की क़ीमत है? नहीं तो


हुआ जो कुछ यही मक़सूम था क्या?

यही सारी हिकायत है? नहीं तो


अज़ीयत-नाक उम्मीदों से तुझको

अमाँ पाने की हसरत है? नहीं तो


तू रहता है ख़याल-ओ-ख़्वाब में गुम

तो इसकी वजह फ़ुर्सत है? नहीं तो


वहाँ वालों से है इतनी मोहब्बत

यहाँ वालों से नफ़रत है? नहीं तो


सबब जो इस जुदाई का बना है

वो मुझसे ख़ूबसूरत है? नहीं तो


@John Aulia 




सादगी

सादगी


सादगी तो हमारी जरा देखिये, एतबार आपके वादे पे कर लिया |

इक हिचकी में कह डाली सब दास्तान, हमने किस्से को यूँ मुख़्तसर कर लिया ||


सादगी तो हमारी ज़रा देखिए एतबार आप के वादे पर कर लिया ।। 


बात तो सिर्फ़ इक रात की थी मगर इंतिज़ार आप का उम्र-भर कर लिया 


इश्क़ में उलझनें पहले ही कम न थीं और पैदा नया दर्द-ए-सर कर लिया 


लोग डरते हैं क़ातिल की परछाईं से हम ने क़ातिल के दिल में भी घर कर लिया 


ज़िक्र इक बेवफ़ा और सितमगर का था आप का ऐसी बातों से क्या वास्ता 


आप तो बेवफ़ा और सितमगर नहीं आप ने किस लिए मुँह उधर कर लिया 


ज़िंदगी-भर के शिकवे गिले थे बहुत वक़्त इतना कहाँ था कि दोहराते हम 


एक हिचकी में कह डाली सब दास्ताँ हम ने क़िस्से को यूँ मुख़्तसर कर लिया 


बे-क़रारी मिलेगी मुझे न सुकूँ चैन छिन जाएगा नींद उड़ जाएगी 


अपना अंजाम सब हम को मालूम था आप से दिल का सौदा मगर कर लिया 


ज़िंदगी के सफ़र में बहुत दूर तक जब कोई दोस्त आया न हम को नज़र 


हम ने घबरा के तन्हाइयों से 'सबा' एक दुश्मन को ख़ुद हम-सफ़र कर लिया ।। 

@नुसरत फतेह अली खां साहब 




कुछ दिन तो बसो

 कुछ दिन तो बसो मिरी आँखों में

फिर ख़्वाब अगर हो जाओ तो क्या

कोई रंग तो दो मिरे चेहरे को
फिर ज़ख़्म अगर महकाओ तो क्या

जब हम ही न महके फिर साहब
तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या

इक आइना था सो टूट गया
अब ख़ुद से अगर शरमाओ तो क्या

तुम आस बंधाने वाले थे
अब तुम भी हमें ठुकराओ तो क्या

दुनिया भी वही और तुम भी वही
फिर तुम से आस लगाओ तो क्या

मैं तन्हा था मैं तन्हा हूँ
तुम आओ तो क्या न आओ तो क्या

जब देखने वाला कोई नहीं
बुझ जाओ तो क्या गहनाओ तो क्या

अब वहम है ये दुनिया इस में
कुछ खोओ तो क्या और पाओ तो क्या

है यूँ भी ज़ियाँ और यूँ भी ज़ियाँ
जी जाओ तो क्या मर जाओ तो क्या

@Gulam ali Sahab


फज़ा (Fazaa)

 

फज़ा 





फज़ा भी है जवाँ, जवाँ
हवा भी है रवाँ, रवाँ
सुना रहा है ये समा
सुनी सुनी सी दास्ताँ
पुकारते हैं दूर से, वो काफिले बहार के
बिखर गये हैं रंग से, किसी के इंतजार के
लहर लहर के होंठ पर, वफ़ा की है कहानियाँ
सुना रहा है ये समा...
बुझी मगर बुझी नहीं, न जाने कैसी प्यास है
करार दिल से आज भी, ना दूर है ना पास है
ये खेल धूप-छाँव का, ये कुरबतें, ये दूरियाँ
सुना रहा है ये समा...
हर एक पल को ढूंढता, हर एक पल चला गया
हर एक पल फिराक का, हर एक पल विसाल का
हर एक पल गुजर गया, बना के दिल पे इक निशाँ
सुना रहा है ये समा...








चौदहवीं की रात Chaudavi ki raat


-@Insha 

कल चौदहवीं की रात थी
शब भर रहा चर्चा तेरा
कल चौदहवीं की रात थी
कुछ ने कहा ये चाँद है
कुछ ने कहा, चेहरा तेरा
कल चौदहवीं की रात थी

हम भी वहीं, मौजूद थे
हम से भी सब पुछा किए
हम हँस दिए, हम चुप रहे
मंज़ूर था परदा तेरा
कल चौदहवीं की रात थी...

इस शहर में किस से मिलें
हम से तो छूटी महफिलें
हर शख्स तेरा नाम ले
हर शख्स दीवाना तेरा
कल चौदहवीं की रात थी...

कूचे को तेरे छोड़ कर
जोगी ही बन जाएँ मगर
जंगल तेरे, पर्वत तेरे
बस्ती तेरी, सेहरा तेरा
कल चौदहवीं की रात थी...

बेदर्द सुन्नी हो तो चल
कहता है क्या अच्छी ग़ज़ल
आशिक तेरा, रुसवा तेरा
शायर तेरा, इंशा तेरा||😍
कल चौदहवीं की रात थी...

दोनो ही सवाल(Dono hi sawal)

 दोनो ही सवाल



बाहर झाँकू या अंदर खुद के
अंधेरा नापू या रोशनी खुद की
देखू तुझे या देखू खुद को
मानू तुझे पूरा या अधूरा खुद को
बादलों से ढका तू या पाऊ खुद को
तू या कि मैं.. दोनो ही सवाल हैं।।@maira



दुनिया बड़ी बावरी(Duniya badi Bawari)

         आज दुनिया बड़ी बावरी


जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है

संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रक्खा है

उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी

नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रक्खा है

आप गैरों की बात करते हैं
आज दुनिया बड़ी बावरी

पत्थर पूजने जाय

घर की चक्की कोई ना पूजे, 
जिसका पिसा खाय। 

पत्थरो आज मेरे सर पे बरसते क्यूँ हो

मैं ने तुम को भी कभी अपना ख़ुदा रक्खा है

अब मेरे दीद की दुनिया भी तमाशाई है

तू ने क्या मुझ को मोहब्बत में बना रक्खा है

पी जा अय्याम की तल्ख़ी को भी हँस कर 'नासिर'

ग़म को सहने में भी क़ुदरत ने मज़ा रक्खा है  @नासिर








दोस्त बन बन के मिले (Dost Ban Ban Ke Mile)

 




दोस्त बन बन के मिले

दोस्त बन बन के मिले मुझको मिटाने वाले
मैने देखे हैं कई रंग बदलने वाले

तुमने चुप रहके सितम और भी ढाया मुझपर
तुमसे अच्छे हैं मेरे हाल पे हँसने वाले

मैं तो इखलाक़ के हाथों ही बिका करता हूँ
और होंगे तेरे बाज़ार में बिकने वाले

अखिरी दौर पे सलाम-ए-दिल-ए-मुस्तर लेलो 
फिर ना लौटेंगे शब-ए-हिज्र पे रोनेवाले...@Jagjit Singh (singer) 



कौन आयेगा यहाँ (Kon Ayega yaha)

                  कौन आयेगा यहाँ,


कौन आयेगा यहाँ,कोई न आया होगा

मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा

 

दिल-ए-नादां न धड़क, ऐ दिल-ए-नादां न धड़क

कोई खत ले के पड़ोसी के घर आया होगा

 

गुल से लिपटी तितली को गिराकर देखो

आँधियों तुमने दरख़्तों को गिराया होगा

 

'कैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकां

अब के बारिश में उसे तोड़ गिराया होगा 

                             -@Kaif Bhopali 




 

 


मुस्कुराने की बात (Muskurane ki baat)

        


मुस्कुराने कीबात



आशियानेकी बात करते हो

दिल जलाने की बात करते हो

सारी दुनिया के रंज-ओ-ग़म दे कर

मुस्कुराने की बात करते हो

हम को अपनी ख़बर नहीं यारो

तुम ज़माने की बात करते हो

ज़िक्र मेरा सुना तो चढ़ के कहा

किस दिवाने की बात करते हो

हादसा था गुज़र गया होगा

किस के जाने की बात करते हो

-By Jawed Qureshi






खुश हूँ

 खुश हूँ खुश हूँ दिन भर मुद्राएं जोड़ने में खुश हूँ उन्हें न खर्च करने में।।  खुश हूँ स्वयं को ब्यस्त रखने में,  खुश हूँ किसी को न मिलने में...