Sawalo ka dayara ( boundaries of Questions)


सवालों का दायरा





Woman, Girl, Walken, Go For A Walk, Backpack, Out

सवालों का दायरा बढ़ सा गया, कविता में मेरी ....
शायद जवाब जानना हो गया, उतना ही जरुरी |

तेरे अंदर की अच्छाई को न जान सका कोई...... 
लेकिन बुराई को छाँट- छाँट कर सवांरने लगा हर कोई |

क्यों जुबां की मिठास को कमजोरी मान ली गयी ,
न लड़ - झगड़ने के स्वभाव को बेईमान मान ली गयी 

आज इस दौर में ये क्या होता जा रहा .....
वो खुद अविश्वासी, विश्वास की बातें बता रहा |

इंसानियत , उसके ज़हन से उतरने लगी ...
मदद के नाम पर , स्वार्थी सूरत निखारने लगी |

ज़िंदगी इन सवालों में उलझ सी गयी ....
बिना जवाबों के ही ,ये कविता भी ख़त्म हुई ||

                                                                           - Maira 














No comments:

शहर की रानाईयां

 जगमगाते शहर के रानाईयों में, क्या न था  ढूंढने निकला था जिसको मैं, वही चेहरा न था ।।  मिलते चले लोग कई, राह में क्या न था  ढूंढने निकला था ...