Uljhan (confusion)

 उलझन 


बहुत पहले जब याद आते थे, मुझे 
गणित के सूत्र सारे 
ज्यामिति जब अच्छे से आती थी मुझे 
जब शायद सारे रिश्तों की परिधि 
दूरी और उनकी नजदीकियां
अच्छे से निकाल सकती थी मैं
कौन से रिश्ते को कहाँ और किस 
कोण पर रखना है, मुझे 
तब शायद बेहतर समझ सकती थी मैं 
पर उस वक़्त तुमने मुझे 
सिर्फ किताबो मे उलझाए रखा 
न मैंने कोई रिश्ता जोड़ा, ना घटाया उनको
और ना ही कोई सूत्र लगाया उनमें 
आज जब सालों बाद ,मैं सारे सूत्र 
सारी ज्यामिति भूलती जा रही हूँ
तुमने रखकर सारे रिश्ते मेरे सामने 
मुझे रिश्तों के गणित मे उलझा दिया है...........




शहर की रानाईयां

 जगमगाते शहर के रानाईयों में, क्या न था  ढूंढने निकला था जिसको मैं, वही चेहरा न था ।।  मिलते चले लोग कई, राह में क्या न था  ढूंढने निकला था ...