उम्मीद
वो चले जा रहे हैं,
उम्मीदों का मकां तोड़ के.....
जो बना था अर्से से,
हर एक अश्क जोड़ - जोड़ के।।
माना है मैंने, वो ख़फ़ा हैं...
मेरी उम्मीद की ऊँची देहलीज़ से....
यहाँ टूट कर बिखरा जा रहा है,
दिल का शहर, हर गलीच से।।
वजह 'उम्मीद' को बता कर ....
जो जा रहे हैं आज वो,
उनको उम्मीद है
बना लेंगे घरौंदा फिर से वो.......।।
-@maira
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उम्मीद |
9 comments:
Nice
Nice
Yes 💕
Good composition
Thanks 🌹❤
Thanks
Ha ji
Thanks ma'am
बहुत ख़ुब 👍👍👍👍
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