सोच की कोई दिशा नहीं पर समझ की सुन्दर काया है Soch ki koi disha nahi pr samjh ki sundar kaya hai.
मैं बंदिशो से आज़ाद करूँ,बेनाम सी आवाज़ को ।
लफ़्ज़ों के परवाज लगाकर, कह दूँ हर अरमान को। सर्द हवाओ मे आफताब सी, कहती हर मौसम की बेबसी ।
विरह मे सुकूं , हूँ देती
प्रेम की कहती अभिलाषा भी।।
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