मैं बंदिशो से आज़ाद करूँ,
बेनाम सी आवाज़ को ।
लफ़्ज़ों के परवाज लगाकर,
कह दूँ हर अरमान को।
सर्द हवाओ मे आफताब सी,
कहती हर मौसम की बेबसी ।
विरह मे सुकूं , हूँ देती
प्रेम की कहती अभिलाषा भी।।
"मेरी रचना, मेरी कल्पना " - @maira
सोच की कोई दिशा नहीं पर समझ की सुन्दर काया है Soch ki koi disha nahi pr samjh ki sundar kaya hai.
जगमगाते शहर के रानाईयों में, क्या न था ढूंढने निकला था जिसको मैं, वही चेहरा न था ।। मिलते चले लोग कई, राह में क्या न था ढूंढने निकला था ...
No comments:
Post a Comment