मैं वही हूँ (Main Wahi Hoon)
रात भर जल कर दिया
देर तक बैठी रही मैं , बैठी रही
सुबह के हल्के गुलाबी कोहरे से गुजरा मुसाफिर
मेरे दरवाजे पे आकार रुक गया
पूछा मुझे
“वो कौन है ?”
“ वो कौन है?”
मैं ही मारे शर्म के कह न सकी
मैं वही हूँ
मैं वही हूँ
मैं वही हूँ वह मेरे मुसाफिर |
शाम आई जब सिरहाने पर जालना था दिया
देर तक बैठी रही खिड़की पे मैं
बैठी रही |
शाम की सुरखी में रथ पर लौटकर आया मुसाफिर
धूल थी कपड़ों पे
दरवाजे फिर पूछा मुझे
“वो कहाँ है ?
"वो कहाँ है ?”
मैं ही मारे शर्म के कह न सकी
मैं वही हूँ
मैं वही हूँ
मैं वही हूँ वह मेरे मुसाफिर |
बारिशों की रात है
कमरे में जलता है दिया
फर्श पे बैठी हूँ खिड़की के तले
और अंधेरी रात में अब गुनगुनाती रहती हूँ
मैं वही हूँ
मैं वही हूँ
मैं वही हूँ वह मेरे मुसाफिर |
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