मैं दीपक हूँ
मैं दीपक हूँ, मेरा जलना ही तो
मेरा मुस्काना है।
आभारी हूँ तुमने आकर
मेरा ताप-भरा तन देखा,
आभारी हूँ तुमने आकर
मेरा आह-घिरा मन देखा,
करुणामय वह शब्द तुम्हारा
’मुस्काओ’ था कितना प्यारा।
मैं दीपक हूँ, मेरा जलना ही तो मेरा मुस्काना है।
है मुझको मालूम!
पुतलियों में दीपों की लौ लहराती,
है मुझको मालूम कि
अधरों के ऊपर जगती है बाती,
उजियाला कर देने वाली
मुस्कानों से भी परिचित हूँ,
पर मैंने तम की बाहों में अपना साथी पहचाना है
मैं दीपक हूँ, मेरा जलना ही तो मेरा मुस्काना है।
@H.R Bacchan
2 comments:
सुन्दर
बहुत सुंदर रचना
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