नहीं तो

 ये ग़म क्या दिल की आदत है?



ये ग़म क्या दिल की आदत है? नहीं तो

किसी से कुछ शिकायत है? नहीं तो


है वो इक ख़्वाब-ए-बे ताबीर इसको

भुला देने की नीयत है? नहीं तो


किसी के बिन किसी की याद के बिन

जिए जाने की हिम्मत है? नहीं तो


किसी सूरत भी दिल लगता नहीं? हाँ

तो कुछ दिन से ये हालत है? नहीं तो


तुझे जिसने कहीं का भी नहीं रक्खा

वो इक ज़ाती सी वहशत है? नहीं तो


तेरे इस हाल पर है सब को हैरत

तुझे भी इस पे हैरत है? नहीं तो


हम-आहंगी नहीं दुनिया से तेरी

तुझे इस पर नदामत है? नहीं तो


वो दरवेशी जो तज कर आ गया तू

ये दौलत उस की क़ीमत है? नहीं तो


हुआ जो कुछ यही मक़सूम था क्या?

यही सारी हिकायत है? नहीं तो


अज़ीयत-नाक उम्मीदों से तुझको

अमाँ पाने की हसरत है? नहीं तो


तू रहता है ख़याल-ओ-ख़्वाब में गुम

तो इसकी वजह फ़ुर्सत है? नहीं तो


वहाँ वालों से है इतनी मोहब्बत

यहाँ वालों से नफ़रत है? नहीं तो


सबब जो इस जुदाई का बना है

वो मुझसे ख़ूबसूरत है? नहीं तो


@John Aulia 




2 comments:

आलोक सिन्हा said...

सुंदर रचना

Anita said...

बहुत खूब!!
दिल दिल से बातें करता है, ख़ुद ही हाँ, न बुनता है

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