बरसात की बूंदों में (Barsat ki Bundo mein)


बरसात की बूंदों में लिपटी ये रातें,

याद आने लगीं बीतीं सारी बातें।


कली की तरह खिल रही है ये बरसात,

हर सांस हुई गुलजार, पुष्पशाला सी बनी रात।


गीत गाती हैं बूंदें, सरगम की धुन सुना रहा आसमां,

इस नए रंग में सजी, मौसम की पहली बरसात ।


भीनी सी ठंडक, दिल की आग बुझाने लगी,

दर्द के रागों में बंधी, सुकून की लोरियाँ सुनाती ये रात। 


गहरी आँखों में बसी, बे फ़िकर सी ये बरसात,

ख्वाबों का धुंधला सिलसिला, प्यार भरी बातें साथ।


बरसात की रिमझिम सुन, दिल की धड़कन भी बढ़ी,

जीवन की गहराईयों में डूबती ये रात । 


बरसात की बूंदों में लिपटी ये रातें.......................। । 


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कौन सी बात है तुम में ऐसी, इतने अच्छे क्यूँ लगते हो

 इतनी मुद्दत बा'द मिले हो 

किन सोचों में गुम फिरते हो 


इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो 

हर आहट से डर जाते हो 


तेज़ हवा ने मुझ से पूछा 

रेत पे क्या लिखते रहते हो 


काश कोई हम से भी पूछे 

रात गए तक क्यूँ जागे हो 


में दरिया से भी डरता हूँ 

तुम दरिया से भी गहरे हो 


कौन सी बात है तुम में ऐसी 

इतने अच्छे क्यूँ लगते हो


पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा था 

पत्थर बन कर क्या तकते हो

जाओ जीत का जश्न मनाओ 

में झूटा हूँ तुम सच्चे हो 


अपने शहर के सब लोगों से 

मेरी ख़ातिर क्यूँ उलझे हो 


कहने को रहते हो दिल में 

फिर भी कितने दूर खड़े हो 


रात हमें कुछ याद नहीं था 

रात बहुत ही याद आए हो 

हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से 

अपनी कहो अब तुम कैसे हो 


'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो 

जैसे हो फिर भी अच्छे हो


- शायर मोहसिन




नहीं तो

 ये ग़म क्या दिल की आदत है?



ये ग़म क्या दिल की आदत है? नहीं तो

किसी से कुछ शिकायत है? नहीं तो


है वो इक ख़्वाब-ए-बे ताबीर इसको

भुला देने की नीयत है? नहीं तो


किसी के बिन किसी की याद के बिन

जिए जाने की हिम्मत है? नहीं तो


किसी सूरत भी दिल लगता नहीं? हाँ

तो कुछ दिन से ये हालत है? नहीं तो


तुझे जिसने कहीं का भी नहीं रक्खा

वो इक ज़ाती सी वहशत है? नहीं तो


तेरे इस हाल पर है सब को हैरत

तुझे भी इस पे हैरत है? नहीं तो


हम-आहंगी नहीं दुनिया से तेरी

तुझे इस पर नदामत है? नहीं तो


वो दरवेशी जो तज कर आ गया तू

ये दौलत उस की क़ीमत है? नहीं तो


हुआ जो कुछ यही मक़सूम था क्या?

यही सारी हिकायत है? नहीं तो


अज़ीयत-नाक उम्मीदों से तुझको

अमाँ पाने की हसरत है? नहीं तो


तू रहता है ख़याल-ओ-ख़्वाब में गुम

तो इसकी वजह फ़ुर्सत है? नहीं तो


वहाँ वालों से है इतनी मोहब्बत

यहाँ वालों से नफ़रत है? नहीं तो


सबब जो इस जुदाई का बना है

वो मुझसे ख़ूबसूरत है? नहीं तो


@John Aulia 




किताबें (Kitabein)

किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से बड़ी हसरत से तकती हैं  महीनों अब मुलाक़ातें नहीं होतीं जो शामें उन की सोहबत में कटा करती थीं, अब अ...