इक ख़्वाब (ek khwab)

इक ख़्वाब (Ek khwab)

सुब्ह सुब्ह इक ख़्वाब की दस्तक पर दरवाज़ा खोला

सरहद के उस पार से कुछ मेहमान आए हैं

आँखों से मानूस थे सारे

चेहरे सारे सुने सुनाए

पाँव धोए, हाथ धुलाए

आँगन में आसन लगवाए

और तन्नूर पे मक्की के कुछ मोटे मोटे रोट पकाए

पोटली में मेहमान मेरे

पिछले सालों की फ़सलों का गुड़ लाए थे

आँख खुली तो देखा घर में कोई नहीं था

हाथ लगा कर देखा तो तन्नूर अभी तक बुझा नहीं था

और होंटों पर मीठे गुड़ का ज़ाइक़ा अब तक चिपक रहा था

ख़्वाब था शायद!

ख़्वाब ही होगा!!

सरहद पर कल रात, सुना है चली, थी गोली

सरहद पर कल रात, सुना है

कुछ ख़्वाबों का ख़ून हुआ था 

-- गुलजार







मैं वही हूँ (Main Wahi Hoon)

मैं वही हूँ (Main Wahi Hoon)

 

जब सिरहाने बुझ रहा था 
रात भर जल कर दिया

देर तक  बैठी रही मैं , बैठी रही
सुबह के हल्के गुलाबी कोहरे से गुजरा मुसाफिर 
मेरे दरवाजे पे आकार रुक गया 
पूछा  मुझे
“वो कौन है ?”
“ वो कौन है?”

मैं ही मारे शर्म के कह न सकी
मैं  वही  हूँ
मैं  वही  हूँ
मैं  वही हूँ  वह  मेरे  मुसाफिर |

शाम आई जब सिरहाने पर जालना था दिया
देर तक बैठी रही खिड़की पे मैं
बैठी रही |

शाम की सुरखी में रथ पर लौटकर आया मुसाफिर
धूल थी कपड़ों पे
दरवाजे फिर पूछा मुझे

“वो कहाँ है ?
"वो कहाँ है ?”

मैं ही मारे शर्म के कह न सकी
मैं  वही  हूँ
मैं  वही  हूँ
मैं  वही हूँ  वह  मेरे  मुसाफिर |

बारिशों की रात है
कमरे में जलता है दिया 
फर्श पे बैठी हूँ खिड़की के तले 
और अंधेरी रात में अब गुनगुनाती रहती हूँ 
मैं  वही  हूँ
मैं  वही  हूँ
मैं  वही हूँ  वह  मेरे  मुसाफिर |

                            

-- By Gulzar





सादगी

सादगी सादगी तो हमारी जरा देखिये, एतबार आपके वादे पे कर लिया | इक हिचकी में कह डाली सब दास्तान, हमने किस्से को यूँ मुख़्तसर कर लिया || सादगी त...