वो हम-सफ़र था
वो हम-सफ़र था मगर उस सेहम-नवाईन थी
कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी
अदावतें थीं, तग़ाफ़ुल था, रंजिशें थीं बहुत
बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी
बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी
सोच की कोई दिशा नहीं पर समझ की सुन्दर काया है Soch ki koi disha nahi pr samjh ki sundar kaya hai.
कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी
अदावतें थीं, तग़ाफ़ुल था, रंजिशें थीं बहुत
बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी
बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी
जगमगाते शहर के रानाईयों में, क्या न था ढूंढने निकला था जिसको मैं, वही चेहरा न था ।। मिलते चले लोग कई, राह में क्या न था ढूंढने निकला था ...