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सादगी

सादगी


सादगी तो हमारी जरा देखिये, एतबार आपके वादे पे कर लिया |

इक हिचकी में कह डाली सब दास्तान, हमने किस्से को यूँ मुख़्तसर कर लिया ||


सादगी तो हमारी ज़रा देखिए एतबार आप के वादे पर कर लिया ।। 


बात तो सिर्फ़ इक रात की थी मगर इंतिज़ार आप का उम्र-भर कर लिया 


इश्क़ में उलझनें पहले ही कम न थीं और पैदा नया दर्द-ए-सर कर लिया 


लोग डरते हैं क़ातिल की परछाईं से हम ने क़ातिल के दिल में भी घर कर लिया 


ज़िक्र इक बेवफ़ा और सितमगर का था आप का ऐसी बातों से क्या वास्ता 


आप तो बेवफ़ा और सितमगर नहीं आप ने किस लिए मुँह उधर कर लिया 


ज़िंदगी-भर के शिकवे गिले थे बहुत वक़्त इतना कहाँ था कि दोहराते हम 


एक हिचकी में कह डाली सब दास्ताँ हम ने क़िस्से को यूँ मुख़्तसर कर लिया 


बे-क़रारी मिलेगी मुझे न सुकूँ चैन छिन जाएगा नींद उड़ जाएगी 


अपना अंजाम सब हम को मालूम था आप से दिल का सौदा मगर कर लिया 


ज़िंदगी के सफ़र में बहुत दूर तक जब कोई दोस्त आया न हम को नज़र 


हम ने घबरा के तन्हाइयों से 'सबा' एक दुश्मन को ख़ुद हम-सफ़र कर लिया ।। 

@नुसरत फतेह अली खां साहब 




कुछ दिन तो बसो

 कुछ दिन तो बसो मिरी आँखों में

फिर ख़्वाब अगर हो जाओ तो क्या

कोई रंग तो दो मिरे चेहरे को
फिर ज़ख़्म अगर महकाओ तो क्या

जब हम ही न महके फिर साहब
तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या

इक आइना था सो टूट गया
अब ख़ुद से अगर शरमाओ तो क्या

तुम आस बंधाने वाले थे
अब तुम भी हमें ठुकराओ तो क्या

दुनिया भी वही और तुम भी वही
फिर तुम से आस लगाओ तो क्या

मैं तन्हा था मैं तन्हा हूँ
तुम आओ तो क्या न आओ तो क्या

जब देखने वाला कोई नहीं
बुझ जाओ तो क्या गहनाओ तो क्या

अब वहम है ये दुनिया इस में
कुछ खोओ तो क्या और पाओ तो क्या

है यूँ भी ज़ियाँ और यूँ भी ज़ियाँ
जी जाओ तो क्या मर जाओ तो क्या

@Gulam ali Sahab


Ummid ( Hope)

        उम्मीद 

वो चले जा रहे हैं, 
               उम्मीदों का मकां तोड़ के..... 
जो बना था अर्से से, 
                हर एक अश्क जोड़ - जोड़ के।। 



माना है मैंने, वो ख़फ़ा हैं... 
              मेरी उम्मीद की ऊँची देहलीज़ से.... 
यहाँ टूट कर बिखरा जा रहा है, 
               दिल का शहर, हर गलीच से।। 



वजह 'उम्मीद' को बता कर .... 
               जो जा रहे हैं आज वो, 
उनको उम्मीद है 
              बना लेंगे घरौंदा फिर से वो.......।। 
                                               -@maira 

उम्मीद







शहर की रानाईयां

 जगमगाते शहर के रानाईयों में, क्या न था  ढूंढने निकला था जिसको मैं, वही चेहरा न था ।।  मिलते चले लोग कई, राह में क्या न था  ढूंढने निकला था ...